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- अध्यात्म ही Quantum Physics है ? क्या है विज्ञान और अध्यात्म के बिच का सच और झूठ !!
अध्यात्म और क्वांटम फिजिक्स: क्या सच में एक ही शास्त्र हैं?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष 2025 को "क्वांटम वर्ष" के रूप में घोषित किया है. और इसी वर्ष भारत में प्रयागराज में अध्यात्म का महापर्व भी है, जिसे हम कुंभमेला के नाम से जानते है. इस कुंभमेले में कई अध्यात्मिक बाबा विज्ञानं और अध्यात्म के सम्बन्धों पर भी बोलते नजर आये.
उसी में एक IITयन बाबा (वो वास्तव में IIT मुंबई के स्टूडेंट थे और अध्यात्म की और आकर्षित हो कर साधू बन गये) एक इंटरव्यू में ये कहते हुए नजर आयें की, "अध्यात्म ही Quantum Physics है ", और उनके तर्कों और तथ्यों से काफी लोग भी प्रभावित हुए.
चलो हम समझेंगे की, क्या वास्तव में अध्यात्म ही Quantum Physics है ? या ये बस लोगों को गुमराह करने वाली बातें है . क्या हम तथ्यों के साथ इसे उजागर कर पाते है ? क्या क्वांटम फिजिक्स के सिद्धांतों में अध्यात्मिकता के निकष को हम सही तरह से तथ्यों के साथ तालमेल बिठा सकते है? क्या अध्यात्म क्वांटम फिजिक्स के आगे जाकर हमें क्वांटम सिद्धांतों के अनुरूप प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम है ? इस सभी बातों की चर्चा विस्तार के साथ हम इस आर्टिकल में करेंगे.
Quantum Physics - नये विज्ञान का विस्तार
क्वांटम फिजिक्स, जिसकी शुरवात होती है सन 1900 में जानेमाने वैज्ञानिक मैक्स प्लैंक के “ब्लैक बॉडी रेजीनन्स” में रखे प्रस्ताव के साथ। जिसमे उन्होंने उर्जा को छोटे छोटे पैकेट्स में बहने की बात की, और ये साबित भी किया, उर्जा के इन छोटे छोटे पैकेट्स को उन्होंने “क्वांटा” कहाँ।
सन 1905 में अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने अपने “फोटो इलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट” के जरिये तरंग अवधारणा से आगे बढ़कर प्रकाश उर्जा के सूक्ष्म कणों की खोज की जिसे हम आज “फोटोन” के नाम से जानते है।
यह परिणाम काफी चमत्कारिक थे जो क्लासिकल फिजिक्स द्वारा समझाए जाने में असमर्थ थे. इसके साथ जन्म हुआ क्वांटम फिजिक्स का जो सूक्ष्म से सूक्ष्म कणों के व्यवहार को समझने के लिए महत्वपूर्ण साबित होता है।
इसके बाद नील्स बोहर, वर्नर हाइजेनबर्ग, एरविन श्रेडिंगर, पॉल डीरेक जैसे महानतम वैज्ञानिकों ने क्वांटम फिजिक्स के व्याप्ति को बढाकर विज्ञानं को एक ऐसे स्तर पर खड़ा कर दिया जिसने दुनिया को बदलकर रख दिया।
2012 - God Particle की खोज
और अब हम ग्रेविटी के कणों की खोज में लगे है जिसे अल्बर्ट आइंस्टाइन ने संभावित किया था अपने सापेक्षता सिद्धांत में. इस संभावित कण को ग्रॅविटोन नाम दिया गया है।
अध्यात्म और क्वांटम फिजिक्स में समानताएं
ये बात मैं इसलिए कहता हूँ की क्वांटम फिजिक्स भी ये मानता है की हर उर्जा का एक वाहक है जो अपने आप में एक कण या कण-तरंग द्वैत है। इसी तरह से , देवताओं के भी वाहन हम देखते है, हर देवता का एक अपना वाहन है जो दार्शनिक है वास्तव में वो एक ऐसा कण है जो उस ऊर्जा का वाहक है।
लेकिन केवल इसी बात से हम अध्यात्म ही क्वांटम फिजिक्स है, ये नही कह सकते। इसके लिए हमे ठोस तथ्यों की आवश्यकता है। और साथ ही हमें यह भी देखना है की खोजी गयी बातों को अध्यात्म से जोड़ना ही पर्याप्त नही है , बल्कि खोजी गयी बातों के बाद खोजी जानेवाली बातों की ओर अध्यात्म किस तरह से हमे इंगित करता है। जो सिद्धान्तिक रूप से तथ्यों पर खरी उतरती हो।
ब्रम्हांड निर्माण के क्वांटम सिद्धांत
क्वांटम फिजिक्स में ब्रम्हांड निर्माण की अवधारणा को एक क्षणिक उर्जा कण के साथ होनेवाले बिग बैंग से जोड़ा जाता है , जहाँ टाइम , स्पेस और मैटर के साथ डेंसिटी और टेम्परेचर सर्वाधिक था , जैसे ही टेम्परेचर कम हुआ हिंग्स फील्ड्स में मौजूद ऊर्जा सक्रिय हो गयी, और अन्य उर्जा कणों को डेंसिटी प्रदान करने लगी, इस तरह क्वांटम फिजिक्स में ब्रम्हांड के जन्म की व्याख्या अधोरेखित की जाती है।
तो इसके लिए हम हाल ही में खोजे गये हिंग बोसॉन की बात करते है , जो हमे हिंग्स फ़ील्ड में प्राप्त होता है। हिंग्स फ़ील्ड पुरे ब्रम्हांड में मौजूद है,याने हम यह कह सकते है की हिंग्स बोसॉन हिंग्स फील्ड में मौजूद उर्जा का वाहक है।
हिंग्स फ़ील्ड में मौजूद उर्जा (जो वैक्यूम ऊर्जा होती है ) अन्य कणों को द्रव्यमान (mass) प्रदान करती है। जो गुरुत्व उर्जा के साथ सक्रीय होती है। याने ब्रम्हांड निर्माण के लिए हिंग्स फील्ड और गुरुत्व फील्ड सीधे तौर पर जिम्मेदार है ये क्वांटम फिजिक्स की अवधारणा है।
ब्रम्हांड निर्माण के अध्यात्मिक विचार क्वांटम सिद्धांतों से मेल खाते है
मैंने शुरवात मे ही आपसे कहाँ था अध्यात्म में देवताओं का उल्लेख दार्शनिक है, ब्रम्हांड में मौजूद अलग अलग ऊर्जा ही अध्यात्म में देवता स्वरुप है। अध्यात्म में ब्रम्हा, विष्णु और महेश याने शिव जो ब्रम्हांड निर्माण के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है।
साथ ही अध्यात्म में ब्रम्ह को सृष्टि क सृजन करनेवाला , विष्णु को संतुलित करनेवाला और शिव को विनाश की देवता माना जाता है। साथ ही शिव को ही आदि और अनंत माना गया है , अगर ये दार्शनिक है और वास्तव में उर्जा है तो ब्रम्ह ये हिंग्स फील्ड जैसी उर्जा है जहाँ द्रव्यमान(mass) प्रदान होता है, विष्णु ये गुरुत्वीय फील्ड जैसी उर्जा है जो द्रव्यमान प्राप्त कणों के साथ संतुलित होती है, और शिव एक ऐसी उर्जा है जहाँ अन्य उर्जा कणों के विस्तार को नियंत्रित किया जाता है।
अध्यात्म में इस बात का जिक्र भी है की, विष्णु और ब्रम्हा शिवतत्व से ही प्रगट हो कर शिवतत्व में ही विलीन होते है और शिव को अनंत अविनाशी कहाँ गया है।
क्वांटम फिजिक्स भी ये मानता है की ब्रम्हांड निर्माण के बाद हिंग्स फील्ड और ग्रेविटी फ़ील्ड सक्रिय हुआ है लेकिन क्वांटम फिजिक्स के कुछ वैज्ञानिक ये भी मानते है की डार्क एनर्जी ब्रह्मांडीय शून्यता (Vacuum State) का एक स्वाभाविक हिस्सा हो सकती है, जो बिग बैंग के पहले से अस्तित्व में हो और यदि ब्रह्मांड "बिग फ्रीज (Big Freeze)" या "हीट डेथ (Heat Death)" की ओर बढ़ता है, तो भी उसका प्रभाव जारी रहेगा। याने अध्यात्म कहीं न कहीं शिवतत्व को डार्क एनर्जी फील्ड के तरह प्रस्तुत करता है ।
और अध्यात्म ये भी कहता है की, ब्रम्हतत्व, विष्णुतत्व , और शिवतत्व सृष्टि के चराचर में व्याप्त है , और क्वांटम फिजिक्स की बात करें तो हिंग्स फील्ड, गुरुत्वीय फील्ड और डार्क एनर्जी फील्ड ब्रम्हांड के सभी जगह मौजूद है साथ में क्वांटम फिजिक्स इस बात को भी मानता है की डार्क एनर्जी का कोई कण मौजूद हो सकता है।
ये बात भी कही न कही अध्यात्म में एक्सप्लेन की हुई बातों से मेल खाती है। इसके साथ ही अध्यात्म कई देवताओं , उनके कार्य और सम्बन्धों को उजागर करता है
मुझे लगता है की यह भी ब्रम्हांड में मौजूद कई ज्ञात और अज्ञात उर्जा का ही विश्लेषण है , जैसे क्वांटम फिजिक्स में ब्रम्हांड में मौजूद कई उर्जाओं और उनके वाहक कणों का जिक्र होता है , जैसे , Kinetic Energy, Potential Energy, Thermal Energy, Chemical Energy, Electrical Energy, Nuclear Energy, Radiant Energy
मुझे लगता है की अध्यात्म में जो तेहतीस कोटि देवताओं वाली बाते है वो इसी तरह की उर्जा की है। इस तरह से अनगिणत उर्जा ब्रम्हांड में समाई हुई हो सकती है , इससे क्वांटम फिजिक्स नकार नही सकता , साथ ही कई उपनिषदों में हम ब्रम्हांड निर्माण और कण व्यवहार के बारे में जान सकते है जिसमे प्रमुख ग्रंथो का उल्लेख करे तो कठोपनिषद, माण्डूक्य उपनिषद, छांदोग्य उपनिषद, तैत्तिरीय उपनिषद, योग वशिष्ठ, सांख्य दर्शन, अद्वैत वेदांत, यजुर्वेद ये प्रमुखता से कण व्यवहार का विश्लेषण करते दीखते है।
कठोपनिषद का एक श्लोक एक्साम्प्ल के तौर पर देखे तो इस में कहाँ गया है , "अणोरणीयान महतो महीयान" (यह ब्रह्म अणु से भी सूक्ष्म और विशालतम से भी बड़ा है)। इसका अर्थ है कि ब्रह्म का स्वरूप असीम और सूक्ष्मतम दोनों है। यह विचार क्वांटम कणों (जैसे, क्वार्क और न्यूट्रिनो) से मिलता-जुलता है, जो अणु से भी छोटे होते हैं लेकिन विशाल प्रभाव डालते हैं।
निष्कर्ष
लेकिन मुझे ये भी लगता है ही हम अब भी पूरी तरह से अध्यात्म और क्वांटम फिजिक्स के सम्बन्धों को पूरी तरह से उजागर नही कर पाते है , इसलिए अध्यात्म ही क्वांटम फिजिक्स है ये कहना उचित नही कहा जा सकता या इसे जल्दबाजी करार दिया जा सकता है।
मुझे लगता है हमे क्वांटम फिजिक्स के अनेकों सिद्धांतों के साथ अध्यात्म को जांचना चाहिए और संभावित परिणामों पर गहन अध्ययन करना चाहिए । और एक ही आर्टिकल के माध्यम से ये संभव नही है। आनेवाली आर्टिकल श्रुंखला में हम क्वांटम सिद्धांतों के साथ कणों , क्वांटम स्थिति , और उर्जा को अध्यात्म के माध्यम से जानेंगे।
साथ ही भविष्य में होनेवाली खोजो के साथ अध्यात्म के तालमेल को खोजने की कोशिश करेंगे। जैसे गुरुत्वीय कण जो अभी भी खोजा नही गया है उस सम्बन्ध में अध्यात्म की राय क्या है? और अध्यात्म में हम उसे कहाँ पाते है ? यह दावा करना सर्वथा अनुचित है की अध्यात्म ही क्वांटम फिजिक्स है । इसे हम कड़ी दर कड़ी जोड़ते जाना होगा तभी हम किसी ठोस बातों को जान सकते है।